नई दिल्ली (इंविसंकें) श्रीजयकृष्णी प्रतिनिधि सभा पंजाब एवं फ़्रंटियर की स्थापना के 100 वर्ष पूर्ण होने के अवसर पर शताब्दी महोत्सव मनाया गया। इस अवसर पर करोलबाग़ नई दिल्ली में श्री साँवली मूर्ति मंदिर का शिलान्यास राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत जी एवं महानुभाव (जय कृष्णी) पंथ के पूजनीय महंतों एवं संतों की गरिमामय उपस्थिति में संपन्न हुआ।
समारोह में सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत जी ने कहा कि हिन्दू समाज को संगठित करना है तो समता अनिवार्य बात है। सामाजिक समता और हिन्दू संगठन यह दो समानार्थी शब्द हैं। ऐसा हमारे पूज्य तृतीय सरसंघचालक बाला साहब देवरस जी कहते थे।
उन्होंने कहा कि शान्ति से ही उन्नति होती है। हमें नीति के साथ उन्नति करनी है, जियें और दूसरों को भी जीने दें। इसी को कहते हैं अहिंसा। भारत धर्म परायण देश है और धर्म के चार पैर होते हैं – सत्य, करुणा, पवित्रता व तपस्चर्या।
मंदिरों का महत्व है। मंदिर हमें शांति प्रदान करते हैं, मंदिर का केन्द्र मूर्ति होती है। मूर्ति में हम अपने आराध्य जीवन के सारे तत्वों की प्रतिमूर्ति देखकर शांत मन से उनके जीवन तत्व को अपने व्यवहार में उतारने की शक्ति प्राप्त करते हैं। मनुष्य का स्वभाव अच्छाई की ओर जाता है।
हमारी आंखों में अगर विषमता का विष चढ़ गया है तो उसको उतार दें। चक्रधर स्वामी ने तत्व ज्ञान तो गीता का ही बताया। तत्व ज्ञान वही बताया, लेकिन व्यवहार करके बताया। समाज में जिनको ज्ञान प्राप्त करने का अधिकारी नहीं माना जाता था, उन्हें भी अपने साथ जोड़ा। उस समय यह इसीलिए सोचा गया क्योंकि संतों को जो समदृष्टि प्राप्त होती है वो सारे समाज को देने का बीड़ा उन्होंने उठाया।
उन्होंने कहा कि समय आया है, अपने देश में धर्म का उत्थान हो रहा है। यह वासुदेव श्रीकृष्ण की इच्छा है, ऐसा योगी अरविंद ने कहा है। इसलिए धर्म के उत्थान के साथ भारत का उत्थान यह प्रक्रिया चल पड़ी है और यह पूर्णता की ओर जाएगी। यह पक्का है और इसलिए धर्म के कार्य की उन्नति के लिए जो-जो साधन आप पाने का प्रयास करते हैं, उसमें आप सफल हो रहे हैं। हम जुड़ते हैं तो हमारे लिए भाग्य है कि हम निमित्त बन रहे हैं। आचरण से धर्म बढ़ता है वो आचरण हम कर सकते हैं।