उत्तराखंड के क्षेत्रीय राजनीतिक दल उत्तराखंड क्रांति दल (UKD) के हाथ इस विधानसभा चुनाव में बड़ी निराशा लगी है। एक भी सीट जीत पाने में नाकाम रही UKD को अब अपने चुनाव चिन्ह कुर्सी से भी हाथ धोना पड़ा है।

अपना खाता खोल पाने में भी विफल रही UKD को इस विधानसभा चुनाव में ‘कुर्सी’ का जो चुनाव चिह्न मिला था, वह भी चुनाव आयोग की ओर से अस्थाई तौर पर दल को दिया गया था। हालाँकि, अब चुनाव आयोग के मानकों के अनुसार UKD इस चुनाव चिह्न का कहीं भी प्रयोग नहीं कर सकती है।

राज्य चुनाव आयोग के अनुसार विधानसभा चुनाव, 2022 में उत्तराखंड क्रांति दल (UKD) को महज 1% ही वोट मिले हैं। राज्य की किइस भी सीट पर UKD का एक भी विधायक नहीं जीत पाया।

रिपोर्ट के अनुसार, सहायक मुख्य निर्वाचन अधिकारी मस्तू दास ने बताया कि क्षेत्रीय राजनीतिक दल के लिए कुल वैध मतों का करीब 6% मतदान पार्टी को प्राप्त करना होता है। इसके साथ ही उनकी कुल सीटों पर कम से कम 3 विधायक होने चाहिए। UKD इनमें से किसी भी मानक को पूरा नहीं कर पाई।

कुर्सी का चुनाव चिन्ह UKD को अस्थाई रूप से दिया गया था जिसे कि अब चुनाव आयोग ने वापस ले लिया है। अब UKD इस चुनाव चिन्ह का प्रयोग नहीं कर पाएगी।

उत्तराखंड क्रांति दल (UKD) के केंद्रीय मीडिया प्रभारी शिव प्रसाद सेमवाल ने इस पर अपनी निराशा जताते हुए कहा, “इसकी उत्तराखंड की जनता को एक दिन बहुत बड़ी कीमत चुकानी पड़ेगी। लोग करियर बनाने के लिए राजनीति मे आते हैं, लेकिन मैंने बीस साल का अपना पत्रकारिता का करियर छोड़कर यूकेडी ज्वाइन की थी। समझ नही आता कि मेरे संघर्ष मे कहाँ कमी रह गयी। विश्लेषण कहाँ से शुरू करूँ, कोई सिरा नही सूझ रहा।”

नतीजों के बाद से ही आपसी कलह से जूझ रही UKD वर्ष 2012 में ही राज्य स्तरीय राजनीतिक दल की मान्यता गँवा चुका था। लेकिन पूर्व में राज्य स्तरीय मान्यता प्राप्त दल होने के नाते आयोग ने तीन चुनाव तक उसके प्रतीक ‘कुर्सी’ को बरकरार रखा।

2017 विधानसभा चुनाव के बाद 2019 के लोकसभा चुनाव और ​अब 2022 के चुनाव में भी इस पार्टी का जनाधार जिस तरह सिमटकर रह गया, उसके चलते इस दल का यह हश्र दिख रहा है, जबकि कभी यह पार्टी उभरती हुई दिखी थी।

वर्ष 2012 के चुनाव में UKD ने 41 विधानसभा सीटों पर चुनाव लड़ा और 1 सीट पर जीत हासिल की थी। मत प्रतिशत के हिसाब से आँकड़ा 3.20% यानी पिछले दो बार के मुकाबले आधा रह गया।

इसके बाद वर्ष 2017 चुनाव में UKD का बुरा हाल हुआ। 54 सीटों पर चुनाव लड़ी UKD का एक भी प्रत्याशी नहीं जीत पाया और मत प्रतिशत भी घटकर 1% रह गया। इसके बाद अब वर्ष 2022 के विधानसभा चुनाव में तो पार्टी का मत प्रतिशत एक फीसदी से भी कम रह गया है।

इसके अलावा इस क्षेत्रीय राजनीतिक दल में जमकर एक दूसरे पर जमकर आरोप-प्रत्यारोप लगाए जा रहे हैं। इसके नेताओं ने आपसी बैठक कर पार्टी को दोबारा खड़ा करने पर चर्चा की, जबकि पार्टी से जुड़े सदस्य सोशल मीडिया पर एक दूसरे को पार्टी की हार का जिम्मेदार ठहरा रहे हैं।

अपनी टिप्पणी जोड़ें
Share.

दी लाटा का एकमात्र उद्देश्य समाचार, विश्लेषण एवं संस्मरणों के माध्यम से भारत की बात कहना है।

Exit mobile version